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भारतीय जनता पार्टी व गारेक्षपीठ के उत्तराधिकारी व गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ एक’दूसरे के करीब रहकर भी एक’दूसरे को पूरी तरह अपना नहीं सके। योगी जी कभी राममंदिर, कभी हिन्दुत्व, आतकंवाद, नक्सलवाद आदि मुद़दों पर भाजपा की नीतियों से असहमति जताते रहे हैं। अयोध्या के साकेतवासी महन्त रामदास कोकिल के साकेत उत्सव पर आयोजित समारोह में भी योगी ने राममंदिर को भव्य रूप दिये जाने में हो रहे बिलम्ब के लिए भाजपा को जमकर कोसा। उन्होंने भाजपा पर अपने मूल मुदुदों से दूर होने का आरोप लगाया। योगी की यह बात सच है जिसे बहुत से धर्माचार्य सहमत भी हैं। पर चुनावों के समय यह विरोध कहां चला जाता है। योगी जी को यह जानना चाहिए कि राममंदिर आन्दोलन के नायक व दिगम्बर अखाडा के साकेतवासी श्री महन्त रामचन्द दास की समाधि गडढे में तब्दील है। परमहंस महाराज के साकेतवास के सात वर्ष बीतने को हैं, पर उनकी याद में कोई स्मारक नहीं। भाजपा, विहिप व परमहंस को चाहने का दावा करने वालों को इस विषय पर क्या सात वर्षों में सोंचने का अवसर नहीं मिला, अथवा ये सभी परहमंस के तीखें वाणों को उनके साकेतवासी होने पर भी नहीं पचा रहे हैं। विहिप कार्याध्यक्ष अशोक सिंघल, भाजपा उपाध्यक्ष विनय कटियार आदि परहमंस के जीते जी उनसे उर्जा ग्रहण करने अक्सर उनके दरबार में हाजिरी लगाते रहे। सवाल यह है कि क्या परहमंस की समाधि इन लोगों को उर्जा देने लायक नहीं रही अथवा अब इन्हें उर्जा की जरूरत नहीं रह गयी। हिन्दुओं को इन नेताओं के बयान को गंभीरता से लेने पहले ऐसे बिन्दुओं पर जरुर ध्यान देना चाहिए। नहीं तो न राममंदिर बनेगा, न ही राष्टृ मंदिर। इन नेताओं का मंदिर जरुर बन जायेगा।
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